सांविधानिक प्रावधान
भारत के संविधान में राजभाषा से संबंधित भाग-17
अध्याय 1--संघ की भाषा
अनुच्छेद 120. संसद् में प्रयोग की जाने वाली भाषा –
संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा, परंतु, इसके साथ ही अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति भी है।
अनुच्छेद 210: विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा –
राज्य के विधान-मंडल में कार्य, राज्य की राजभाषा में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा, इसके साथ ही अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति भी है।
अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा -
(1) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
(2) संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक, अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
अनुच्छेद 344. राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति-
- राष्ट्रपति, एक आयोग गठित करेगा. आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग, अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बंधनों, प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप व अन्य संगत विषयों के बारे में सिफारिश करे।
- एक संसदीय समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे.
- समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे।
- राष्ट्रपति, संसदीय समिति के उक्त प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस संपूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा।
अध्याय 2- प्रादेशिक भाषाएं
अनुच्छेद 345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं -
किसी राज्य का विधान-मंडल, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य की भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगाः परंतु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।
अनुच्छेद 346.
एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा--
तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी :
परंतु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 347.
किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध--
यदि इस निमित्त मांग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
अध्याय 3 - उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा
अनुच्छेद 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा--
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जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक--
(क) उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी,
(ख) (i) सभी विधेयकों, (ii) सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के, और (iii) संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल के आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।
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किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगाः
परंतु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी।
- जहां किसी राज्य के विधान-मंडल ने, किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां उस राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।
अनुच्छेद 349. भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया--
इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि के दौरान, कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर और संसदीय समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही देगा, अन्यथा नहीं।
अध्याय 4-- विशेष निदेश
अनुच्छेद 350. व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा--
प्रत्येक व्यक्ति, किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।
अनुच्छेद 350 क. प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं--
प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।
अनुच्छेद 350 ख. भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए विशेष अधिकारी--
- भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा।
- विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के संबंध में, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।
अनुच्छेद 351. हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश--
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।